परवेज़ दमानिया और रतन लूथ के साझा प्रयासों से ताओ आर्ट गैलरी में शांतनु दास की पारसी समुदाय की विशिष्टताओं को दर्शाती फ़ोटो प्रदर्शनी
एक जुनूनी आर्ट कलेक्टर, क्यूरेटर और आंत्रप्योनोर के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले परवेज़ दमानिया ने फ़्रवांशी स्कूल से संबंध रखने वाले, एक शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, पारसी खाने के शौक़ीन रतन लूथ के साथ मिलकर 'पारसीस -ए टाइमलेस लेगेसी' नामक एक अनोखी फ़ोटोग्राफ़ी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। २९नवंबर से ४ दिसंबर,२०१९ के बीच मुम्बई के ताओ आर्ट गैलरी में आयोजित इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों को जाने-माने फ़ोटोग्राफ़र शांतनु दास ने अपने कैमरे में क़ैद किया । जीतेंद्र, रोशनी दमानिया, अरीश दमानिया, शर्वरी लूथ, मिक्की मेहता, कुणाल विजयकर, बीना अजीज, कैलाश और आरती सुरेंद्रनाथ, कल्पना शाह, अनहिता देसाई, याझदी देसाई, अर्मायती तिरंदाज़, विराफ मेहता, रैल पदंसी, अनन्या गोएंका, रश्मी खट्टम और सतीश किशनचंदानी समेत पारसी समुदाय के अन्य ज्येष्ठ सदस्य भी 'पारसीस - अ टाइमलेस लेगेसी' के इस प्रीव्यू में शामिल हुए।
विरासत:
पारसी होने का मतलब है परसिया (ईरान) से आये ज़ोराश्ट्रियनों की पहले खेप का वंशज होना, जिन्हें एक सहस्त्राब्दी पहले भारत ने अपने यहां बसने और उनकी पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया था। पारसी होने का एक मतलब एक ऐसे समुदाय विशेष से होना भी है, जिनकी आबादी लगातार तेज़ी से कम होती जा रही है। पारसी होने का एक और अर्थ पूरी ज़िम्मेदारी से एक ऐसे धर्म की मशाल को जलाये रखना है, जो हमेशा से एकेश्वरवाद पर यकीन करता आया है।
सिकुड़ता हुआ समुदाय:
माइग्रेशन के प्रति बढ़ते आकर्षण, अंतर-जातीय विवाह का बढ़ता प्रभाव और पश्चिमी जीवन-शैली का बढ़ते चलने की वजह से भारत में अब पारसियों की संख्या बेहद कम बची है। २०१६ के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पारसियों की संख्या घटकर महज़ ६१,००० रह गयी हैं और यह दिनों-दिन और कम होती जा रही है। बाक़ी ४०,००० पारसी दुनियाभर में फ़ैले हुए हैं, जो अपनी पहचान को बचाये रखने के लिए संघर्षरत हैं।
परवेज़ दमानिया कहते हैं, "मुझे हमेशा से ही पारसी समुदाय के प्रति आकर्षण रहा है और मूझे इस बात का गर्व है कि मेरा ताल्लुक भी उसी समुदाय से है। इस प्रदर्शनी के आयोजन का मक़सद लोगों को पारसियों की जीवन-शैली और कम संख़्या में होकर भी भारत के विकास में दिये गये उनके बहुमूल्य योगदान से अवगत कराना है। ऐसे कम ही आर्टिस्ट हुए हैं जिन्होंने पारसी समुदाय के लोगों के जीवन को डॉक्यूमेंट किया है और उनसे भी कम लोग हुए हैं जिन्हें उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी और निजी परंपराओं को इस तरह से डॉक्यूमेंट करने की इजाजत मिली है। ऐसे में इस अवसर का इस्तेमाल हम पारसी संस्कृति, रीति-रिवाज़ों और उनकी परंपराओं को एक बड़ी आबादी तक पहुंचाने के लिए करना चाहते थे।
इस मौके पर रतन लूथ ने कहा, "इस प्रदर्शनी का मक़सद एक ऐसे समुदाय की ज़िंदगी को डॉक्यूमेंट करना है, उनकी संस्कृति व परंपराओं को संरक्षित करने की कोशिश करना है, जिसकी आबादी तेज़ी से कम होती जा रही है। यह बहुत अहम बात है कि पारसियों की विरासत को जीवित रखा जाये और आज की और आगे की पीढ़ी तक उनसे संबंधित तमाम जानकारियां पहुंचायीं जायें ताक़ि वक्त के थपेड़ों में इस समुदाय की पहचान कहीं खो न जाये।"
तस्वीरों की ख़ासियत:
इस बेहद अलग तरीके की प्रदर्शनी में शांतनु दास की 50 तस्वीरों का प्रदर्शन किया जायेगा। शांतनु एक बहुत ही उम्दा किस्म के फ़ोटोजर्नलिस्ट के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है, जिसमें नैट जियो ट्रैवल अवॉर्ड का भी शुमार है। शांतनु दास ने पवित्र मानी जाने वाली कई सीमाओं को भी लांघा हैं और ऐसा कर उन्होंने पारसियों की संस्कृति, रीति-रिवाज़ों और त्योहारों से संबंधित निजी परंपराओं को बहुत ही ख़ूबसूरती से अपने कैमरे में क़ैद किया है। इनमें काम में संलग्न, प्रार्थनाओं और जश्न में व्यस्त पारसियों का उत्साह सभी कुछ शामिल है।
उल्लेखनीय है कि इन तस्वीरों को शांतनु ने पांच से छह सालों के बीच न सिर्फ़ मुम्बई में बल्कि सूरत, उडवादा, कोलकाता जैसे कई शहरों में अपने कैमरे में क़ैद किये है। वे कहते हैं "पारसी लोग बेहद ख़ुशमिजाज़ होते हैं। उन्हें समर्पित ये मेरी दूसरी प्रदर्शनी है। इतने सालों से उनसे जुड़ी तस्वीरों को खींचते वक्त मुझे उनके साथ बातचीत करने के कई मौके हासिल हुए, जिससे मुझे पता चला कि पारसी बहुत ही मददगार किस्म के लोग होते हैं और वे अपने मन में कभी भी दूसरों के लिए दुर्भावना नहीं पालते हैं।"
माना जा रहा है कि 'पारसिस - ए - टाइमलेस लेगेसी' के ओपनिंग समारोह में विभिन्न क्षेत्रों की गणमान्य हस्तियां और सेलेब्रिटीज़ भी मौजूद होंगे, जो अपनी उपस्थिति से इस अनूठे समुदाय और इसके उत्साही लोगों के प्रति अपनी सद्भावना व्यक्त करेंगे। इस प्रदर्शनी की सबसे ख़ास बात यह होगी कि इस उद्घाटन समारोह में पारसी महिलाओं और पुरुषों के अलावा सेलिब्रिटी गेस्ट भी शामिल होंगे, जो डुगली और फ़ेटा जैसे पारंपरिक परिधान पहनकर इसमें शामिल होंगे जबकि तमाम महिलाएं एम्ब्रायडरी वाली गारा पहने नज़र आयेंगी।
यूं तो दमानिया और लूथ के लिए हर फ़्रेम यादों का अनोखा कारवां लेकर आया है, मगर एक तस्वीर जिसने दोनों पर सबसे ज़्यादा प्रभाव छोड़ा है, वह है दो पारसी पंडितों और लड़के द्वारा एक ऐसी जावा मोटरसाइकिल की सवारी है, जिसमें एक साइड कार भी जुड़ी हुई है। दोनों को यह तस्वीर बेहद आकर्षक लगी क्योंकि आज की तारीख़ में जावा मोटरसाइकिल के दर्शन बेहद दुर्लभ होते हैं और वह भी एक साइड कार के साथ। यह तस्वीर वाहनों के प्रति पारसियों के प्रेम को भी बख़ूबी दर्शाती है।
अगर कुछ बदल जाता है, तो बहुत कुछ नहीं भी बदलता है। एक लम्बा अर्सा बीत जाने के बावजूद भी पारसियों ने अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान बनाये रखी है। इस प्रदर्शनी के ज़रिए आप भी भारत के इस अनूठे पारसी समुदाय के बारे में करीब से जान सकते हैं। अपनी घ्राण शक्ति और धानसक, पत्रानामुच्चि और अकुरी जैसी चीज़ों को पसंद करने के लिए जाने जानेवाले पारसी समुदाय से जुड़ी बातों को जानना आपके लिए अपने आप में अनोखा अनुभव साबित होगा। पारसी समुदाय को जहां खुले विचारों वाला समुदाय माना जाता है, वहीं उनकी पहचान एक बेहद पारंपरिक व धार्मिक समुदाय के रूप में भी होती है। अपने धर्म द्वारा सिखायी तीन बातों - अच्छे विचार, अच्छे बोल और अच्छे कर्म पर उनका हमेशा से अटूट विश्वास रहा है।
अन्य आम लोगों के लिए यह प्रदर्शनी २९ नवंबर २०१९ से ४ दिसंबर २०१९ तक रोज़ाना सुबह ११ बजे से शाम ७ बजे तक खुली रहेगी।
Comments
Post a Comment